SCC is a place where u can get free study material for academic & competitive exams like CTET,SSC,IIT,NDA,Medical exams etc,

Sunday, 29 May 2016

रबड़ (rubber)क्या है और यह कितने प्रकार की होती है?

रबड़ क्या है और यह कितने प्रकार की होती है?

रबड़ का निर्माण भूमध्य रेखीय सदाबहार वनों के पेड़ों से निकलने वाले दूधजिसे लेटेक्स कहते हैं, से किया जाता हैं। यह एक इलैस्टोमर (Elastomer) अर्थात् एक बहुलक/पॉलीमर है जिसमें उच्च प्रत्यास्थता (Elasticity) व अपने आकार को पुनः प्राप्त करने का गुण पाया जाता है | सबसे पहले यह अमेजन बेसिन में जंगली रूप में उगता था, वहीं से यह इंगलैण्ड निवासियों द्वारा दक्षिणी-पूर्वी एशिया में ले जाया गया। इसकी उत्तम कृषि के लिए 25 से 32 डिग्री सें. तक का उच्च तापमान, अत्यधिक वर्षा, लाल, लैटराइट, चिकनी एवं दोमट मिट्टी तथा अधिक मानव-श्रम की आवश्यकता होती है। इसकी कृषि की उपयुक्त दशाओं की उपलब्धता के कारण ही यह दक्षिण पूर्वी एशिया में अधिक पैदा किया जाता है। रबड़  का आदिम स्थान अमरीका है। अमरीका की एक आदि जाति 'माया' थी, जिसमें रबड़  के गेंद प्रचलित थे। क्रिस्टोफर कोलंबस ने सन्‌ 1493 ई. में वहाँ के आदिवासियों को रबड़  के बनी गेदों से खेलते देखा था।
रबड़ के प्रकार
रबड़ को प्राकृतिक व कृत्रिम/ संश्लेषित (Synthetic) दो प्रकारों में बाँटा जा सकता है-
1. प्राकृतिक रबड़
प्राकृतिक रबड़  पेड़ों और लताओं के रस या लेटेक्स से बनता है। सबसे अधिक रबड़  हैविया ब्राजीलिएन्सिस से प्राप्त होता है। यह अमरीका के अमेज़न नदी के जंगलों में उगता था और अब भारत के त्रावणकोरकोचीनमैसूरमलाबारकुर्गसलेम और श्रीलंका में उगाया जाता है। पाँच वर्ष के हो जाने पर पेड़ से लेटेक्स निकलना शुरू होता है और लगभग 40 वर्षों तक निकलता रहता है। एक पेड़ से प्रति वर्ष प्राय: 6 पाउंड तक रबड़  प्राप्त होता है।
पेड़ों के धड़ को छेदने या काटने से लेटेक्स निकलता है जिसमें शुष्क रबड़  की मात्रा लगभग 32 प्रतिशत रहती है। रबड़ क्षीर पानी से हल्का हाता है। लेटेक्स में रबड़  के अतिरिक्त रेज़िनशर्कराप्रोटीनखनिज लवण और एंज़ाइम रहते हैं। पेड़ से निकलने के बाद लेटेक्स का परिरक्षण आवश्यक है अन्यथा लेटेक्स का स्कंदन (Coagulationहोने से जो रबड़  प्राप्त होता है वह उत्तम कोटि का नहीं होता है। लेटेक्स के परिरक्षण के लिए 0.5 से 1.0 प्रतिशत अमोनियाफॉर्मेलिन तथा सोडियमया पोटैशियम हाइड्राक्साइड का प्रयोग होता है। इनमें अमोनिया सर्वश्रेष्ठ होता है। लेटेक्स कोलॉयड सा व्यवहार करता है और इसका पीएच मान 7 होता है और अमोनिया से यह 8 से 11 हो जाता है।
लेटेक्स से रबड़  की प्राप्ति के लिए का लेटेक्स का स्कंदन होता है। स्कंदन की कई पुरानी रीतियाँ है जैसे- रबड़ क्षीर को मिट्टी के गड्ढे में गाड़ देनापेड़ के धड़ पर ही रबड़ क्षीर को स्कंदन के लिए छोड़ देनाधुएँ से लेटेक्स का स्कंदन करना आदि लेकिन आधुनिक रीति में स्कंदन के लिए रसायनिक अम्लअम्लीय लवणसामान्य लवणऐल्कोहॉल इत्यादि का प्रयोग होता है । ऐसीटिक अम्लफॉर्मिक अम्ल और हाइड्रोफ्लोरिक अम्ल स्कंदन के लिए उत्तम होते हैं। वर्तमान में विद्युत्‌ प्रवाह द्वारा भी स्कंदन होने लगा है |
वल्कनीकरण
प्राकृतिक रबड़ अपनी प्रकृति में थर्मोप्लास्टिक है अतः यह गर्मियों में मुलायम व चिपचिपी हो जाती है और सर्दियों में कठोर हो जाती है | इसी समस्या के समाधान के लिए प्राकृतिक रबड़ के सैम्पल को गर्म स्टोव पर रखकर उसमें सल्फर व लिथार्ज (लेड ऑक्साइड,PbO) मिलाने से रबड़ जैसे ही पदार्थ का निर्माण होता है जिसकी प्रकृति थर्मोस्टेट या थर्मोस्टेटिंग पॉलीमर जैसी होती है | इस प्रक्रिया को वल्कनीकारण (Vulcanization) कहते हैं|   
2. कृत्रिम/ संश्लेषित रबड़
रसायनशालाओं में अनुसंधान के फलस्वरूप आज कृत्रिम रबड़ भी बनने लगा है। कुछ गुणों में कृत्रिम रबड़ प्राकृतिक रबड़ से उत्कृष्ट होता है। कुछ विशेष कामों के लिए तो कृत्रिम रबड़ प्राकृतिक रबड़ से अधिक उपयोगी सिद्ध हुए हैं।कृत्रिम रबड़ का निर्माण अपेक्षकृत आधुनिक है। प्रथम विश्वयुद्ध के समय सबसे पहले जर्मनी में  इसका निर्माण बड़े पैमाने पर शुरू हुआ था। कृत्रिम रबड़ को इलैस्टोमर, इलास्टिन, इथेनॉयड, थायोप्लास्ट, इलास्टोप्लास्ट इत्यादि नामों से भी जाना जाता है।
इनके निर्माण में अनेक असंतृप्त हाइड्रोकार्बन आइसोप्रीन, व्यूटाडीन, क्लोरोप्रीन, पिपरिलीन, साइक्लोपेंटाडीन, स्टाइरिन, तथा अन्य असंतृप्त हाइड्रोकार्बन आइसोप्रीन, व्यूटाडीन, क्लोरोप्रीन, पिपरिलीन, साइक्लोपेंटाडीन, स्टाइरिन, तथा अन्य असंतृप्त यौगिक मेथाक्रिलिक अम्ल, मेथाइल मेथाक्रिलेट विशेष उल्लेखनीय हैं। ये रसायन अनेक स्रोतों से प्राप्त होते हैं। कुछ रसायनक पेट्रोलियम से भी प्राप्त होते हैं। रबड़ बनाने में इनका बहुलकीकरण होता है। कृत्रिम रबड़ का भी प्राकृतिक रबड़ सा ही वल्कनीकरण होता है। व्यूटाडीन से प्राप्त कृत्रिम रबड़ को व्यूना-एस, परव्यूनान और परव्यूनानएक्स्ट्रा कहा जाता है । व्यूना-एस का बना टायर पर्याप्त टिकाऊ होता है।
रबड़ के उपयोग
रबड़  का उपयोग शांति और युद्धकाल मेंघरेलू और औद्योगिक कार्यों में समान रूप से होता है। संसार के समस्त रबड़  के उत्पादन का प्राय: 78 प्रतिशत गाड़ियों के टायरों और ट्यूबों के बनाने में तथा शेष जूतों के तले और एड़ियाँबिजली के तारखिलौनेबरसाती कपड़ेचादरेंखेल के सामानबोतलों और बर्फ के थैलोंसर्जरी के सामान इत्यादि चीजों के बनाने में प्रयुक्त होता है। वर्तमान में रबड़  की सड़के भी बनने लगी हैंजो पर्याप्त टिकाऊ सिद्ध हुई है।


Rubber , what is rubber ,properties of rubber , type of rubber ,type of rubber ,rubber ,notes in hindi , chemistry in hindi, free notes ,download ,free study material , ssc notes in hindi ,hindi meterial ,kuch bhi, coaching centre ,sharma coaching centre ,sharma sir 9718041826 ,9718041826,delhi best coaching centre ,



पुष्पीय पौधों में लैंगिक प्रजनन




















Share on Google Plus Share on whatsapp

0 comments:

Post a Comment

Download app for android

Download app for android

Search

Popular Posts

Facebook

Blogger Tips and TricksLatest Tips For BloggersBlogger Tricks
SCC Education © 2017. Powered by Blogger.

Total Pageviews