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Wednesday, 25 May 2016

जीवों का पाँच जगत वर्गीकरण

जीवों का पाँच जगत वर्गीकरण

अध्ययन की दृष्टि से जीवों को उनकी शारीरिक रचना,रूप व कार्य के आधार पर अलग-अलग वर्गों में बाँटा गया है | जीवों का ये वर्गीकरण एक निश्चित पदानुक्रमिक दृष्टि अर्थात् जगत (Kingdom), उपजगत(Phylum), वर्ग (Class), उपवर्ग(Order), वंश(Genus) और जाति(Species) के पदानुक्रम में  किया जाता है | इसमें सबसे उच्च वर्ग ‘जगत’ और सबसे निम्न वर्ग ‘जाति’ होती है| अतः किसी भी जीव को इन छः वर्गों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है|
वर्गीकरण विज्ञान का विकास
सर्वप्रथम अरस्तू ने जीव जगत को दो समूहों अर्थात् वनस्पति व जंतु जगत में बाँटा था |उसके बाद लीनियस ने अपनी पुस्तक ‘Systema Naturae में सभी जीवधारियों को पादप व जंतु जगत में वर्गीकृत किया |लीनियस को ‘आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली का पिता’कहा जाता है क्योंकि उनके द्वारा की गयी वर्गीकरण प्रणाली के आधार पर ही आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली की नींव पड़ी है|
1969 ई. में परंपरागत द्विजगत वर्गीकरण प्रणाली का स्थान व्हिटकर (Whittaker) द्वारा प्रस्तुत पाँच जगत प्रणाली ने ले लिया | व्हिटकर ने सभी जीवों को निम्नलिखित पाँच जगत (Kingdoms) में वर्गीकृत किया:  
1. मोनेरा जगत (Kingdom  Monera): इस जगत में प्रोकैरियोटिक जीव अर्थात् जीवाणु (Bacteria), सायनोबैक्टीरिया और आर्कीबैक्टीरिया शामिल हैं|
2. प्रोटिस्टा जगत (Kingdom Protista): इस जगत में एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीव शामिल हैं | पादप व जंतु के बीच स्थित युग्लीना इसी जगत में शामिल है |
3कवक जगत (Kingdom Fungi) : इसमें परजीवी तथा मृत पदार्थों पर भोजन के लिए निर्भर जीव शामिल है | इनकी कोशिका भित्ति काईटिन की बनी होती है |
4. पादप जगत (Kingdom Plantae): इस जगत में शैवाल व बहुकोशिकीय हरे पौधे शामिल हैं |
5. जंतु जगत (Kingdom Animal)इसमें सभी बहुकोशिकीय जंतु शामिल होते हैं | इसे ‘मेटाजोआ भी कहा जाता है |
1982 ई. में मार्ग्युलियस व स्वार्त्ज़ (Margulius and Schwartzने पाँच जगत वर्गीकरण का पुनरीक्षण (Revision) किया | इसमें एक प्रोकैरियोटिक और चार यूकैरियोटिक जगत अर्थात् प्रोटोसिस्टा (Protocista), कवक, पादप व जंतु को शामिल किया गया | वर्तमान में इस वर्गीकरण प्रणाली को ही सर्वाधिक मान्यता प्राप्त है |  
1. मोनेरा जगत (प्रोकैरियोटिक):
इसे पुनः आर्कीबैक्टीरिया (Archaebacteria) और यूबैक्टीरिया(Eubacteria ) में बाँटा जाता है, जिनमें से आर्कीबैक्टीरिया अधिक प्राचीन है |
a. आर्कीबैक्टीरिया: इनमें से अधिकांश स्वपोषी (Autotrophs) होते हैं और वे अपनी ऊर्जा चयापचय क्रिया (Metabolic Activities), रासायनिक ऊर्जा के स्रोतों (जैसे-अमोनिया,मीथेन,और हाइड्रोजन सल्फाइड  गैस) के आक्सीकरण से प्राप्त करते हैं | इन गैसों की उपस्थिति में ये अपना स्वयं का अमीनो अम्ल बना सकते हैं | इन्हें तीन वर्गों में बाँटा जाता है- मेथोनोजेंस (मीथेन का निर्माण करते है), थर्मोएसिडोफिल्स (अत्यधिक उष्ण और अम्लीय पर्यावरण के प्रति अनुकूलित) तथा हैलोफिल्स (अत्यधिक लवणीय पर्यावरण में बढ़ने वाले)|  
b. यूबैक्टीरिया:  इनमें प्रायः झिल्ली से घिरे हुए केन्द्रक आदि कोशिकांग(Organelles) नहीं पाए जाते हैं | न्युक्लियोएड (Nucleoid) एकमात्र गुणसूत्र की तरह कार्य करता है | प्रकाश संश्लेषण व इलेक्ट्रानों का हस्तांतरण (Transfer) प्लाज्मा झिल्ली पर होता है |
                                     यूबैक्टीरिया                                        
2. प्रोटिस्टा जगत (प्रोटोसिस्टा)
a. इसमें विभिन्न प्रकार के एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीव, जैसे एककोशिकीय शैवाल, प्रोटोज़ाआ और एककोशिकीय कवक शामिल हैं|
b. ये स्वपोषी (जैसे- एककोशिकीय कवक,डायटम) या परपोषी (जैसे- प्रोटोज़ाआ) होते हैं| 
c. एककोशिकीय कवक, क्लोरेला, युग्लीना, ट्रिपैनोसोमा (नींद की बीमारी का कारण ), प्लाज्मोडियम, अमीबा, पैरामीशियम (Paramecium), क्लामिडोमोनास (Chlamydomonas) आदि इसके उदाहरण हैं|
                                 पैरामीशियम                           
3. कवक जगत
a. इसमें वे पौधे शामिल हैं जो प्रकाश संश्लेषण (photosynthetic) क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वयं तैयार नहीं कर पाते हैं |
b. ये परपोषी (Heterotrophic) और यूकैरियोटिक होते हैं |
c. कुछ कवक परजीवी(Parasites) होते हैं और जिस पौधे पर रहते हैं उसी   से अपने लिए पोषक पदार्थ प्राप्त करते हैं |
d. कुछ कवक, जैसे पेंसीलियम, अपघटक (Decomposer) होते हैं और मृत पदार्थों से पोषक तत्व प्राप्त करते हैं |
e. इनमें भोजन को ग्लाइकोजन के रूप में संचयित (Store) किया जाता है|
f.  कवकों के उदाहरण यीस्ट, मशरूम, दीमक आदि हैं |
4. पादप जगत
a. इसमें बहुकोशिकीय पौधे शामिल होते हैं|
b. ये यूकैरियोटिक होते हैं |
c. इनमें कोशिका भित्ति (Cell wall) पाई जाती है|
d. इनमें टोनोप्लास्त झिल्ली से घिरी हुई एक केन्द्रीय रिक्तिका/ रसधानी (vacuole) पाई जाती है |
e. ये पौधों के लिए भोजन को स्टार्च और लिपिड्स के रूप में संचय (Store) करते हैं|
g. इनमें लवक (Plastids) उपस्थित होते हैं|
h. ये स्वपोषी होते है अर्थात् अपना भोजन स्वयं तैयार करते हैं |
i. पादपों की वृद्धि असीमित होती है |
j. शाखाओं के कारण इनका आकार अनिश्चित होता है |
5. जंतु जगत
a. जंतुओं में भित्ति रहित (wall less) यूकैरियोटिक कोशिकाएं पाई जाती हैं |
b. ये परपोषी होते है|
c. जंतुओं की वृद्धि सीमित होती है |
d. जंतुओं में प्रायः एक निश्चित आकार व रूप पाया जाता है |
e. ज्यादातर जंतु चलायमान (Mobile) होते हैं |     
f. जन्तुओं में कोशिका, ऊतक (Tissue), अंग व अंग प्रणाली के क्रमिक स्तर पाए जाते हैं |



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  2 comments:

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